एक बार भेड़ियों ने सोचा अपना शासन बनातें हैं।
अपराधी भी हमारे, पुलिस भी हमारी, नेता भी हमारे, मंत्री भी हमारे।
जनता को छोड़ देते हैं.... भाग्य पर, संघर्ष पर ।
गुमराह होने के लिए, बर्बाद होने के लिए, नीलाम होने के लिए, शहीद होने के लिए ।
जनता तो जनार्दन हैं वो तो सोये हुए है।
तब क्या भेड़ियों की चाल सफल हो रही हैं?
Saturday, September 19, 2009
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Sahi Kaha. Janardan ko jaldi hee jagna hoga nahi to bhedhiye kahin safal na ho jaiyein.
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