जिस जल में हम रहतें हैं उसमें बड़े मगर हैं,
छोटें बड़े हजारों में जिसमें बड़े ज़हर हैं।
एक दूसरें की नीचता कभी पलकों पे रखतें हैं,
कभी आपस में भिड़ते हैं कभी संधि ये करतें हैं।
मछलियों और केकड़ों का आहार ही,
रहता उनकी संधि का आधार ही।
हम जीव-जंतु का क्या भविष्य क्या वर्तमान?
मगर के जीवन का करतें हैं प्रशस्ति गान।
झूठी प्रशस्ति सुनकर उनके तर जातें हैं,
और इसी साए में हम जीवन बचा पाते हैं।
Sunday, September 6, 2009
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देश की तत्कालीन स्थिति बहुत सटीक लिखी है आपने.. बहुत खूबसूरत. जारी रहें.
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