Saturday, September 19, 2009

भेड़ियों की चाल

एक बार भेड़ियों ने सोचा अपना शासन बनातें हैं।
अपराधी भी हमारे, पुलिस भी हमारी, नेता भी हमारे, मंत्री भी हमारे।
जनता को छोड़ देते हैं.... भाग्य पर, संघर्ष पर ।
गुमराह होने के लिए, बर्बाद होने के लिए, नीलाम होने के लिए, शहीद होने के लिए ।
जनता तो जनार्दन हैं वो तो सोये हुए है।
तब क्या भेड़ियों की चाल सफल हो रही हैं?

Sunday, September 13, 2009

हिन्दी दिवस पर

धन्य हो भारतेंदु
धन्य हो नरेन्द्र देव
धन्य हो मदन मोहन मालवीय
आपने हिन्दी का जो वृक्ष लगाया, बोया, सींचा।
छाँह, फल, शाखा, फूल भूलकर .....
हिन्दी वाले ही काट रहे हैं।
हाय इस वृक्ष की विडम्बना,
जैसे वृक्ष लगाया गया ही इस लिए की इसे काटा जा सके।


Sunday, September 6, 2009

देश की तत्कालीन स्थिति

जिस जल में हम रहतें हैं उसमें बड़े मगर हैं,
छोटें बड़े हजारों में जिसमें बड़े ज़हर हैं।
एक दूसरें की नीचता कभी पलकों पे रखतें हैं,
कभी आपस में भिड़ते हैं कभी संधि ये करतें हैं।
मछलियों और केकड़ों का आहार ही,
रहता उनकी संधि का आधार ही।
हम जीव-जंतु का क्या भविष्य क्या वर्तमान?
मगर के जीवन का करतें हैं प्रशस्ति गान।
झूठी प्रशस्ति सुनकर उनके तर जातें हैं,
और इसी साए में हम जीवन बचा पाते हैं।

Friday, September 4, 2009

login पासवर्ड इतना कठिन ना हो जो ख़ुद ना याद रहे

आज सोचा कि कुछ ब्लॉग करते हैं। इतने दिनों के बाद लिखने का मतलब था यह भी याद रहना कि मेरा loginid और पासवर्ड क्या है? पूरे १ घंटे waste किए यह ढूँढने में की वो क्या था। आख़िर अकाउंट credentials इतना क्या कठिन रखना कि ख़ुद ही याद न रहे? दिमाग इतना puzzled हुआ कि अभी असल का ब्लॉग लिखने का मन ही नही कर रहा है।