Sunday, February 28, 2010

कामयाब होने की रेसेपी

पहले अपनी लोबी बनायें, फिर चापलूसी के बर्तन में अपनी उपस्थिति को गरम करें, उपहार ,भेंट ,ताल्लुकात ,पहुँच का घोल तैयार करें, समय के साथ थोड़ा गाढ़ा होनें दें, विरोधियो केसिद्धांतो को तेज़ चाकू से काटकर उसपर अपने प्रभाव की आइसिंग कर परोस दें, तब जितना चाहें इनाम बटोर लें...

Saturday, February 27, 2010

कागज़ तुम सचमुच विद्या हो

बचपन में कागज़ को चूमना सिखाया माँ ने, विद्या होती है ऐसा कहा। विद्या होती है कि नहीं, पता नहीं पर सबसे पहले कागजों पर ही खबर पढ़ी। कागजों पर ही डिग्रियां मिली। कागजों क़ी अंकतालिका में जितने अंक मिले उतनी ही बुद्धि समझी गयी। कागजों पर विकास की गति देख कर अपना देश विकसित देश बन बैठा। नालियों में सड़ता पानी, पानी में मच्छर, मच्छर से डेंगू मलेरिया, अस्पतालों में मरीजों कि संख्या। पर कागजों पर मच्छर मारने का छिड़काव हुआ। कागजों पर बीमारियाँ खत्म हुईं। कागजों पर ही मरीजों क़ी स्थिति में सुधार हुआ। कागजों पर बेकारी ख़तम। कागजों पर इको-क्लब बने। कागज़ पढ़ कर बड़े बड़े भाषण दिए गए। कागज़ पर उज्जवल होता भारत का भविष्य। वास्तव में कागज़ तुम बहुत महान, बहुत शक्तिशाली और चूमने योग्य हो। कागज़ तुम विद्या हो न हो पर उसका साक्ष्य अवश्य हो।