आज जंगल राज में फ़िर वोट का मौसम आया,
भोली मासूम जनता तुझे फ़िर ये छलने आया !
गिरगिट के रंग देख फ़िर ना विश्वास डगमगाए,
इन घरियाल के आंसू पर अब तू ना तरस खाए!
बगुलाभगत बन तेरी भावनाओं से फ़िर न खेले,
गिध्ह तेरे विवशता को न पैनी दृष्टि से देखे!
अगर नही सोचा तूने तो कुत्ते की मौत मरेगा,
वही भेरिया बन तेरी बोटी से पेट भरेगा!
अभी समय है तोता चश्मों की पहचान तू कर ले,
एक दिन के ताकत का हित में इस्तेमाल करले !!
Sunday, April 5, 2009
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