Sunday, April 5, 2009
गाँधी के तीन बन्दर
गाँधी के तीन बन्दर कभी प्रतीक थे बुरा ना देखने, बुरा ना सुनने और बुरा ना कहने के। आज सन्दर्भ बदल चुके हैं। वही तीन बन्दर प्रतीक हैं - शोषण के खिलाफ आवाज़ न उठाओ - मुह बंद रक्खो, अत्याचार जहाँ हो रहा हो वहां मत देखो - आँख बंद रक्खो और दर्द की चीख से कान विदीर्ण ना हो जायें तो कान बंद रक्खो। तीन बन्दर बने रहेंगे, सन्दर्भ बदलते रहेंगे और हम अपनी बानरी प्रुवर्ती नहीं छोडेंगे।
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Irony yeh hai kee bandar khud nahi batata kee woh aankh, muh aur kaan kyon band kiya hai. Hum use dekhane wale uska tatparya nikalte hain.
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